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सोनिया गांधी अब निर्णायक मुद्रा में!

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निरंजन परिहार

सोनिय गांधी अब कोई बड़ा खतरा मोल नहीं लेना चाहती। देश देख रहा है कि कांग्रेस बेहद गहरे आंतरिक संकट से जूझ रही है। इसीलिए कांग्रेस की राजमाता अब निर्णायक मुद्रा में आ गई हैं। सोनिया गांधी अगली 16 अक्टूबर को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुला रही हैं। इसीलिए कांग्रेस एक बार फिर नए सिरे से खबरों में चमकने की तैयारी में है। पार्टी के अंदरूनी मामलों में दखल देने से बेदखल कर दिए गए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की आगे की संभावनाएं समाप्त होने के बाद कांग्रेस कार्य समिति की यह बहुप्रतीक्षित बैठक होनेवाली है। बैठक एआइसीसी के दफ्तर में होगी। कांग्रेस जानती है कि उसके पास श्रीमती सोनिया गांधी से ज्यादा बड़ा और कद्दावर करिश्माई नेता और कोई नहीं है और जाहिर है कि सोनिया गांधी अपनी इस ख्याति, महिमा और गरिमा को अच्छी तरह समझती भी हैं और इसलिए वे अब निर्णायक मुद्रा में आ गई हैं। संगठनात्मक चुनावों, आगामी विधानसभा चुनावों और मौजूदा राजनीतिक हालात पर इसमें चर्चा होगी। कांग्रेस की ताजा परेशानी यह है कि कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, इसीलिए यह भी समझ लेना चाहिए कि कांग्रेस के जी-23 के नेताओं ने जो पार्टी के भीतर विभिन्न मामलों पर चर्चा करने की मांग की थी, वह मान ली गई है।

हालांकि यह पुरानी बात हो गई है, मगर अब भी प्रासंगिक है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल ने कार्य समिति की बैठक बुलाने की मांग की थी। कांग्रेस कार्य समिति की यह बैठक 16 अक्टूबर को सुबह 10 बजे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यालय 24 अकबर रोड पर बुलाई गई है। कहा तो यही जा रहा है कि देश के मौजूदा राजनीतिक हालात, आगामी विधानसभा चुनावों और संगठनात्मक चुनावों पर चर्चा ही इस बैठक में की जानी है। माना जा रहा है कि पंजाब, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर सहित उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव सर पर हैं। इन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को कोई बहुत चमकदार नतीजों की उम्मीद नहीं है। फिर भी आनेवाले दिनों में इन राज्यों के बारे में फैसले भी लेने बहुत जरूरी हैं। कांग्रेस कार्य समिति की इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव की रूपरेखा पर भी कुछ निर्णय लिये जा सकते हैं। क्योंकि सोनिया गांधी वैसे भी पूर्णकालिक अध्यक्ष ना होकर अंतरिम अध्यक्ष के रूप में अध्यक्ष पद पर विराजमान है।

कांग्रेस कार्य समिति वह सर्वोच्च समिति है, जो कांग्रेस के सभी नीतिगत निर्णय लेने के लिए अधिकृत है। प्रशांत किशोर की सलाह पर पंजाब में असमय लिए गए गलत राजनीतिक निर्णयों के कारण मची राजनीतिक उथल पुथल से कांग्रेस की जबरदस्त किरकिरी हुई है। कार्यसमिति की बैठक ऐसे समय होने जा रही है जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद, अभिजीत मुखर्जी, सुष्मिता देव, लुईजिन्हो फालेरियो जैसे कुछ बड़े नेता और कई अन्य नेता पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हुए हैं। खासकर ममता बनर्जी की पार्टी में उनका जाना बेहद नुकसानदेह है। कांग्रेस जानती हैं कि और कुछ बड़े नेता पार्टी से निकल गए तो पार्टी को फिर से अपनी मजबूती को प्राप्त करने की राह में अच्छी खासी दिक्कतें आ सकती है। मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाए जाने और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे के हंगामे के दौरान ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी इसके संकेत दे चुकी थी कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बहुत जल्द बुलाई जाएगी। फिर भी अनावश्यक रूप से दिल्ली की दखल और राजनीतिक नासमझी ने पंजाब में हंगामा खड़ा कर दिया और उस वजह से देश भर में कांग्रेस के कमजोर होने से उसकी किरकिरी हुई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी और सिब्बल ने इस बैठक की मांग की थी। सिब्बल ने तो साफ साफ कहा था कि उन्हें पता ही नहीं है कि कांग्रेस में आखिर जो हो रहा है, वे निर्णय ले कौन रहा है। और यह भी कहा था कि कांग्रेस कार्य समिति में वर्तमान हालात के हर पहलू पर चर्चा होनी चाहिए तथा पार्टी के संगठनात्मक चुनाव भी कराये जाने चाहिए। आजाद ने तो लगभग नाराजगी की भाषा में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि पार्टी से जुड़े मामलों पर चर्चा के लिए कांग्रेस कार्य समिति की तत्काल बैठक बुलाई जाए।

हालांकि, राहुल गांधी के भाषण बहुत जोश से भरे होते हैं, लेकिन देश देख रहा है कि इस जोश के बावजूद राहुल पार्टी को आंतरिक संकट से उबार नहीं पा रहे है, उल्टे उनकी राजनीतिक शैली मामलों को विकराल ही बना रही है। राहुल गांधी की अनिर्णय में रहने की स्थिति और अपरिपक्व लोगों की सलाह पर उनके द्वारा लिए गए बड़े राजनीतिक फैसलों से हुए नुकसान सहित प्रियंका गांधी के केवल उत्तर प्रदेश में ही सिमटे रहने से कांग्रेस अजब संकट में है। कांग्रेस के कई नेता समय समय पर पार्टी में मचे घमासान के बीच पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े करते रहे हैं। इसी माहौल में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाई गई है। हालांकि सोनिया गांधी वर्तमान में रहने, जीने और फैसले लेने की राजनैतिक ललित कला तो बहुत पहले ही सीख गई थी, लेकिन अब लगता है कि व इस कला के प्रभावी प्रयोगों के ज़रिए बिगड़ते हालातों को बदलने की मुद्रा में भी आ गई है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं )

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