आश्विन शुक्ल पूर्णिमा आज शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई गई। इस दौरान रात्रि में खीर बनाकर चंद्रमा के प्रकाश में रखकर अर्धरात्रि में भोग लगाया गया। इस मौके पर मंदिरों में विशेष झांकियां सजाई गई। ठाकुरजी को धवल पोशाक धारण कर आकर श्वेत पुष्पों से शृंगार किया गया। पूरे गर्भगृह को धवल पुष्पों से सजाया गया।
पूर्णिमा तिथि आज शाम 7 बजकर 3 मिनट पर शुरू हो गई और बीस अक्टूबर रात 8 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार शरद पूर्णिमा का व्रत बुधवार को रखा जाएगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चन्द्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है और इस दिन से शरद ऋतु का आगमन होता है। इस दिन चंद्रमा की दूधिया रोशनी में दूध की खीर बनाकर रखी जाती है और बाद में इस खीर को प्रसाद की तरह खाया जाता है। मान्यता है कि इस खीर को खाने से शरीर को रोगों से मुक्ति मिलती है। वहीं शरद पूर्णिमा का व्रत बुधवार को रखा जाएगा। पंचांग भेद की वजह से कुछ जगहों पर बीस अक्टूबर को भी शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही शरद पूर्णिमा कहा जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस दिन आकाश से चन्द्रमा अमृत वर्षा करते है। श्रीमद भागवत में भगवान कृष्ण की ओर से शरद पूर्णिमा को ही महारास की रचना का वर्णन मिलता है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रकिरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं। पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पडऩे से खीर भी अमृत के समान हो जाती है। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा की शीतल चांदनी में चावल और गाय के दूध से निर्मित खीर रात में और सुबह सेवन से श्वांस व दमा के रोगियों के लिए फायदेमंद मानी गई है।
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